
कोविड 19 से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात पहुंचा हैं, तो वहीं भारत की अर्थव्यवस्था का हाल पहले से भी बुरा है। निर्मला सीतारामन ने हाल ही में कहा कि अर्थव्यवस्था कोविड 19 के रूप में आयी एक दैवीय घटना से प्रभावित हुई है। उनका यह कहना आने वाले समय के बारे में बहुत कुछ कह देता है।
अर्थव्यस्था में गिराव हुआ भगवान के कारण ?
आपको बता दें , जी एस टी कॉउंसिल की मीटिंग में उन्होंने यह बात कही। जिसके बाद से उनका यह बयान काफ़ी चर्चा में है क्योंकि ऐसा कहके उन्होंने एक तरह से अर्थव्यवस्था के खेमें में किए गए गलत फैसलों का थिगड़ा भगवान पर फोड़ दिया है। यह असंवेदनशील इसलिए भी है क्योंकि CMIE की एक रिपार्ट के नए डाटा के मुताबिक अप्रैल से जुलाई के बीच 1.89 करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। ऐसे में सरकार का यह बयान उसके फेलियर को बयां कर रहा है।
GDP ग्रोथ क्या रहेगी इस बार?
दूसरी तरफ सोमवार को सरकार अप्रैल से लेकर जून 2020 तक के लिए जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े जारी करने वाली है। ठीक उससे पहले वित्त मंत्री का यह बयान संकेत देता है कि जीडीपी ग्रोथ इस बार गिर सकती है। जिसका साफ़ मतलब है आम आदमी के लिए आना वाला समय और संघर्षपूर्ण होने वाला है। इसके अलावा मीडिया एजेंसी के मुताबिक भारत में अबतक की सबसे गहरी आर्थिक मंदी पूरे साल बरकरार रहने वाली है। पोल के मुताबिक इस तिमाही में अर्थव्यवस्था के 8.1 प्रतिशत और अगले में 1.0 प्रतिशत सिकुड़ने के चांसेस हैं।
आर्थिक पैकज और बाकि प्रयासों के बाद भी क्यों नहीं पड़ रहा है फर्क?
जानकारों की माने तो डिमांड में कमी होने के कारण बाजार के हालत सुधर नहीं रहे हैं। अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि सरकार का लगभग पौने 2 महीने तक लॉक डाउन रखना और उसके बाद आर्थिक पैकेज की घोषणा करना एक गलत कदम साबित हुआ है। उन्होंने बताया कि आर्थिक पैकज में काफी नाकामियां हैं।
उन्होंने बताया की बाज़ार में डिमांड तब बढ़ेगी जब लोगों के पास पैसा होगा और आज पैसा कॉर्पोरेटर को छोड़के किसी के पास नहीं है। आगे उन्होंने बताया कि जब जीडीपी गिरती है तो हर इंसान अपना पैसा बचाने में लग जाता है और कम निवेश करता है जिससे आर्थिक गति और सुस्त हो जाती है। ऐसे में सरकार को ही ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च करना चाहिए। जिसका मतलब है कि टैक्स काटना और खर्च बढ़ाना ही फ़िलहाल उपाय है।