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उत्तराखंड के VCSG मेडिकल कॉलेज में भावी डॉक्टर्स तंग हालात में रहने को मजबूर, जानिए पूरा मामला

उत्तराखंड के इस सरकारी मेडिकल कॉलेज में मेडिकल छात्रों को हानिकारक परिस्थतियों में रखा जा रहा है। कई प्रलेखो को भेजने के बावजूद भी छात्रों को अनसुना किया जा रहा है।

उत्तराखंड के श्रीनगर स्थित वीर चंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान में भावी डॉक्टर्स को बेहद ही तंग हालातों में रखा जा रहा है। एक तरफ जहां देशभर में कोरोना महामारी का खौफ है वहीं दूसरी और इस सरकारी मेडिकल कॉलेज के छात्र दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर हैं।

सरकारी मेडिकल कॉलेज में छात्र कर रहे हैं इन समस्याओं का सामना

कोरोना महामारी के कारण सरकार यूँ तो खूब सोशल डिस्टैंसिंग करने पर जोर दे रही है तो वहीं दूसरी और भविष्य के डॉक्टर्स को बगैर सोशल डिस्टैंसिंग के एक ही कमरे में रहने पर दबाव बनाया जा रहा है। कोरोना के मध्य अब हॉस्टल में जहां पहले एक ही विद्यार्थी को रखा जाता था उसी कमरे में दो विद्यार्थी को रखा जा रहा है।
छात्र का कहना है कि एक छोटे कमरे में दो छात्र रहने को मजबूर है न तो सामाजिक दूरी बनाई जा सकती है और न ही सही तरीके से पढ़ाई हो रही है।

यूजीसी गाइडलाइन्स का उलंघन

VCSG मेडिकल कॉलेज के छात्रों का कहना है कि कॉलेज में ज्यादा छात्रों के होने के कारण समस्या और भी बढ़ जाएंगी। एक विद्यार्थी बताते हैं कि पानी की समस्या बहुत ज्यादा रहती है पिने और नहाने के लिए नहीं बचता है। जब कोरोना से बचाव के लिए साफ़ सफाई अनिवार्य है तो बिना पानी के ये कैसे संभव है? कोविड गाइडलाइन्स का ऐसे पालन नहीं किया जा रहा है , जिस कारण वायरस संक्रमण का खतरा और भी बढ़ जाता है।

बता दें, UGC ने गाइडलाइन्स जारी करते हुए पहले ही साफ कर दिया था कि उन्हीं संस्थानों को खोला जा सकता है, जहां कोविड प्रोटोकॉल्स को फॉलो किया जाए।

प्रधानचार्य और उच्च अधिकारी तत्काल ले मामले का संज्ञान

छात्रों ने अपनी तकलीफ प्रिंसिपल से बताने की कोशिश की लेकिन उन्हें अनसुना कर दिया गया। जिसके बाद छात्रों ने एक अनुरोध पत्र लिख नेशनल मेडिकल काउंसिल, शिक्षा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और अन्य संभंधित दफ्तरों में भेजा जिससे उनकी बात को सुना जा सके। हालांकि छात्रों का कहना है, प्रधानाचार्य और उच्च अधिकारियों की ढिलाई के चलते ये सब हो रहा है।

उत्तराखंड की सरकार और कॉलेज के प्रधानाचार्य को जल्द से जल्द छात्रों की बात को सुन्ना चाहिए और समस्याओं का हल करना चाहिए। भविष्य के डॉक्टर्स ही यदि ऐसे रहेंगें तो देश के मरीजों का इलाज कौन करेगा?

 

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