उत्तर प्रदेश के ज़िला आज़मगढ़ के गांव संजरपुर में रहने वाली फराह नाज़ बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। संजरपुर गांव में स्थित एक सामाजिक केन्द्र ने देश भर में महामारी बनकर फैले कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए 23 मार्च से मास्क बनाने का काम शुरू हुआ तो फराह मे उसमें बढ़चढ़ उसमें हिस्सा लिया। कुछ दिनों बाद केंद्र ने तय किया कि मास्क बनाने के लिए काम कर रही महिलाओं तथा बच्चियों को दो रूपया प्रति मास्क दिए जाएंगे। लेकिन फरह को जब भी उसकी मेहनत के लिए पैसे देने की बात की जाती तो वह हमेशा टाल देती औरप जवाब होता ‘बाद में ले लेगें।अक्स फराह वें सिलाई के पैसे वापस भी कर देती। इस बीच उसने लगभग1800 से अधिक मास्क की सिलाई की। किसी को अंदाज़ा नही था आखिर फराह के मन में क्या चल रहा है। इस बीच समाजसेवी और रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पाण्डे जी को इस केन्द्र मे हो रहे मास्क उत्पादन का पता चलता है। और वे केन्द्र से संपर्क साधते हुए इच्छा ज़ाहिर करते है कि वें मास्क सिलाई करने वाली महिलाओं को प्रोत्साहन के लिए कुछ देना चाहते हैं।काम कर रही कुल ग्यारह महिलाओं को नौ हज़ार रूपये संदीप पाणडे जी की सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से दिए जाते है। फराह को जब उसके हिस्से का पैसा दिया जाता है तो वह उसे स्वीकार कर लेती है लेकिन अगले दिन फराह एक चिट्ठी के साथ उस पैसे को वापस भेज देती है। चिट्ठी उर्दू भाषा में लिखी गभ थी। उसका मूल और हिंदी अनुवाद इस प्रकार है– “आप लोगों के अनुरोध पर सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से प्रोत्साहन के लिए दिए गए एक हज़ार रूपये को मैंने शुक्रिया के साथ स्वीकार किया। लेकिन देश में प्राकृतिक आपदा के कारण बड़ी संख्या में लोग राशन के संकट से जूझ रहे हैं। आप लोग जाति–धर्म के भेद किए बिना ऐसे लोगों की मदद कर रहे हैं। मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि इस रक़म समेत मास्क की सिलाई में मेरा जो कुछ भी हिस्सा बनता है वह जरूरतमंदों की मदद के लिए खर्च किया जाए। यकीनन मेरा योगदान बहुत छोटा है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप लोग इसे स्वीकार करके मुझे इस सेवा से वंचित नहीं करेंगे”।