
लगभग 139 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश भारत में जनगणना हर 11 साल में की जाती है। अब वर्ष 2021 में दोबरा जनगणना की जाएगी। लेकिन जिस देश में अनेकों धर्म और जाति के लोग रहते हों वहाँ जातीय जनगणना कितनी है यह भी जानने के जिज्ञासा बहुत लोगों में रहती है। भारत में किस जाति की की जनसंख्या कितनी है इस सवाल को लेकर काफ़ी पहले से ही जातीय जनगणना की मांग उठती रही है। लेकिन जितने लोग इसके पक्ष में होते हैं उतने ही विपक्ष में भी खड़े रहते हैं।
इसी दिशा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित दस दलों के 11 नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की। इस प्रतिनिधि मण्डल में बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस नेता अजीत शर्मा, भाजपा से जनक राम, जेडीयू से विजय चौधरी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी, एआईएमआईएम के अख्तरूल इमान, वीआईपी से मुकेश साहनी, सीपीआई के सूर्यकांत पासवान, सीपीएम के अजय कुमार और भाकपा माले से महबूब आलम शामिल थे।
प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय का है इंतज़ार
पीएम मोदी से मिलने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि पीएम मोदी से मिलने के लिए हम 10 पार्टियों के 11 प्रतिनिधि गए थे। उन्होंने कहा कि ‘पीएम मोदी ने बिहार में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर प्रतिनिधि मंडल के सभी सदस्यों की बात सुनी। हमने उनसे उचित फैसला लेने का निवेदन किया है।’ उन्होंने कहा कि ‘पीएम मोदी ने हमारी मांगों को खारिज नहीं किया है।
इस मामले पर वही अंतिम फैसला करेंगें।’ वहीं बिहार में विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने पीएम से मुलाक़ात करने के बाद पत्रकारों से कहा ‘ हमारे प्रतिनिधि मंडल ने आज प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की और हम लोगों ने सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग की है। हमें इस मुद्दे पर निर्णय का इंतज़ार रहेगा।
वर्ष 1931 में आखिरी बार हुई थी जातीय जनगणना
देश में जनगणना वर्ष 1881 में आरंभ हुई थी। यह हर 10 साल में कई जाती है। 1931 में आखिरी बार जातिगत जनगणना की गई थी। 1941 से अब तक सिर्फ़ एससी और एसटी की ही जनगणना होती आई है। बाकि जातियों की अलग से कोई जनगणना नहीं होती। यही कारण है कि पिछले कई वर्षों से जातीय जनगणना कराने की मांग की जा रही है।
पहले भी दो बार केन्द्र सरकार के पास भेजा जा चुका है ये प्रस्ताव
जातीय जनगणना का प्रस्ताव फ़रवरी 2019 में विधानमण्डल और 2020 में बिहार विधानसभा से पास कर दो बार केंद्र सरकार को भेजा गया था। लेकिन दोनों बार इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया। अब एक बार फिर से यह मुद्दा एक बड़ा मुद्दा बन गया है। उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में इस मामले पर सक्रियता बढ़ गई है।
गौरतलब है कि दिल्ली जाने से पहले भी बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पहले भी जातीगत जनगणना को लेकर अपना मत रखते हुए कहा था कि ‘ कम से कम एक बार तो जातीय जनगणना होनी ही चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है अगर यह हो जाये तो इससे अच्छी बात नहीं होगी। यह सिर्फ बिहार नहीं बल्कि पूरे देश की सोच है।
जातीय जनगणना के पक्ष का क्या है तर्क और क्या कहता है विपक्ष
जातीय जनगणना के पक्ष में तर्क देने वालों का कहना है कि विकास कार्यक्रम बनाने के लिए यह आवश्यक है। इससे सरकारी नीतियों के निर्माण में मदद मिलेगी। साथ ही इससे यह जानकारी भी मिल सकेगी की कौन सी जाति पिछड़ रही है। आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की सही स्थिति की जानकारी भी इसके द्वारा मिल पाएगी। वहीं जो इस गणना के विपक्ष में हैं उनका मानना है कि योजनाओं का लाभ सर्वे के द्वारा दिया जा रहा है। इस गणना से समाजिक सन्तुलन बिगड़ सकता है। परिवार नियोजन के जो प्रयास किये जा रहे हैं वो सब विफल हो सकते हैं। साथ ही देह की जनसंख्या में भी वृद्धि हो सकती है।
-भावना शर्मा