ब्लैक, यलो और व्हाइट फंगस में क्या है अंतर और इसे कैसे पहचाने
भारत में कोरोना के मामलों में तो गिरावट देखी जा रही है मगर अब लोगों में एक नई तरह की समस्या सामने आ रही है-जिसका नाम है फंगल इन्फेक्शन।

देश में व्हाइट और ब्लैक फंगस के बाद अब यलो फंगस का केस सामने आया है, जिसके बाद लोगों में डर और बढ़ गया है। साथ ही डॉक्टर्स के लिए भी चुनौतियाँ बढ़ गयी है। सोमवार को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एक ही मरीज में तीनों तरह के फंगल इन्फेक्शन पाए गए हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि यलो फंगस रेप्टाइल्स में पाया जाता है।
ब्लाक फंगस क्या है?
म्युकर माइकोसिस एक फंगस के कारण होता है जो ज्यादातर मिट्टी, पौधों, खाद, गंदे फल और सब्जियों में पनपता है। इससे दिमाग और फेफड़ों पर असर होता है और बहुत कम मामलों में यह इन्फेक्शन पाचन तंत्र को भी प्रभावित करता है। इसके अलावा ज्यादा इंफेक्शन होने ऑपरेशन करना पड़ता है, जिस कारण आँख या जबड़ा भी निकालना पड़ता है। इस फंगल इन्फेक्शन में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है। यदि यह इंफेक्शन लंग्स या पाचन तंत्र तक पहुंच जाए तो यह बेहद खतरनाक हो जाता है।
लक्षण हैं- नाक बंद हो जाना और खून या अन्य पदार्थ निकलना। सिर में दर्द, आँखों में दर्द और सूजन, धुंधला दिखना और अंत में अंधापन हो सकता है।
व्हाइट फंगस के क्या है लक्षण
यह इंफेक्शन उन लोगों में होने की ज्यादा संभावना है जिनकी इम्यूनिटी कम है, डायबिटीज है, या बिना डायबिटिक हैं और लंबे समय तक इलाज के कारण आईसीयू में रहे हैं।
इस इंफेक्शन में फेस पर सफ़ेद पैच आ जाते हैं और जीभ पर भी सफेद दाग दिखने लगते हैं। इसका इंफेक्शन किडनी और फेफड़ों तक भी पहुंच जाता है। मगर यह ब्लैक फंगस जितना खतरनाक नहीं है।
फंगस को रंग से नहीं पहचानिए- डॉ रणदीप गुलेरिया
AIIMS निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बताया कि फंगल इंफेक्शन के लिए अनेक शब्द प्रयोग किए जाते हैं। साथ ही कहा कि यह शब्द भ्रामक हैं जिनसे उलझन हो जाती है। फंगस क्योंकि अलग-अलग अंगों पर अलग रंग का हो सकता है लेकिन हम एक ही फंगस को अलग-अलग नाम दे देते हैं।
डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा जिनकी इम्यूनिटी कम होती है उनमें यह तीन तरह के इंफेक्शन दिखते हैं। साथ ही बताया कि ब्लैक फंगस वातावरण में पाया जाता है और इसके 92-95 प्रतिशत मामले उन मरीजों में मिले हैं जिन्हें डायबिटीज है या जिनके कोरोना के इलाज के दौरान स्टेरॉयड का इस्तेमाल हुआ है।