CBSE के इस कदम से देश में मच सकता है बवाल
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने कोरोना वायरस संकट के मध्य 2020-21 के शिक्षा सत्र में बच्चों का बोझ कम करने के लिए स्कूलों में कोर्स 30 फीसदी कम करने की घोषणा की थी। नई जानकारी के मुताबिक बोर्ड ने लोकतांत्रिक अधिकार के साथ फूड सिक्योरिटी, संघवाद, नागरिकता और निरपेक्षवाद जैसे अहम चैप्टर हटा दिए हैं। इस कदम का शिक्षा संस्थानों के जानकारों और विशेषज्ञों ने विरोध किया है।

क्या हटाया गया है?
CBSE ने कक्षा 9 से 12वीं तक के इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस को रिवाइज़ किया है। इसमें कक्षा 11वीं के पॉलिटिकल साइंस से संघवाद, नागरिकता, राष्ट्रवाद और निरपेक्षवाद जैसे अध्यायों को पूरी तरह से हटा दिया गया है। Local Government नामक चैप्टर से दो यूनिट हटा दिए गए हैं।
इसके साथ कक्षा 12वीं के पॉलिटिकल साइंस से Security in the Contemporary World, Environment and Natural Resources, Social and New Social Movements in India और Regional aspirations चैप्टर्स को भी हटा दिया है। Planning commission and Five year plans यूनिट को ‘ Planned Development’ चैप्टर से हटा दिया गया है।
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इस सत्र के लिए भारत के विदेशी देशों से रिश्तों पर मौजूदा चैप्टर को हटा दिया है। जिसमें भारत के रिश्ते : पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल और श्री लंका टॉपिक थे। क्लास 9 के पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस से ‘Democratic Rights’ और ‘Structure of the Indian Constitution’ अध्यायों को भी सिलेबस से निकल दिया है।
वहीं नौवीं कक्षा के इकोनॉमिक्स के सिलेबस से ‘ भारत में Food Security’ चैप्टर को हटाया गया है। कक्षा 10वीं के सिलेबस में से ‘Democracy and Diversity’, ‘Caste, Religion and Gender’ और ‘Challenges to Democracy’ को भी हटाया गया है।
जानकारों के सवाल–
CBSE के सिलेबस में बदलाव के इस कदम पर NCERT के पूर्व डायरेक्टर कृष्ण कुमार जो कि 2004 से 2010 तक NCERT के डायरेक्टर रह चुके हैं उन्होंने मीडिया से कहा कि CBSE इन चैप्टर्स को हटाकर बच्चों के पढ़ने और समझने के अधिकार को छीना रहा है। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने जिन चैप्टरों को हटाने का फैसला किया है उसमे अंतर्विरोध है। जिसमें उन्होंने पूछा कि यदि आप Federalism के चैप्टर को हटाकर Constitution बच्चों को पढ़ाएं –ये कैसे होगा? सोशल मूवमेंट्स के चैप्टर को हटाकर, इतिहास को पढ़ाना कैसे संभव है?
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उनका कहना है कि परीक्षा लेने के लिए चैप्टर्स हटाना क्यों जरूरी है?
पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुहास पल्शिकर और CBSE के सह लेखक ने भी सरकार इस कदम पर आपत्ति जताई है।उन्होंने कहा कि किताब में से किसी भी चैप्टर को हटाना उसके लॉजिक के खिलाफ होता है। साथ ही कहा जो चैप्टर्स डिलीट किये गए हैं वो विविधता के आईडिया से जुड़े हैं। डाइवर्सिटी लोकतंत्र की आत्मा है और इसे जुड़े चैप्टर हटाने से डेमोक्रेसी की सोच को चोट पंहुचती है। उन्होंने कहा कि प्रेशर कम करने के और भी तरीके हो सकते हैं, जैसे कि किताब को सप्लीमेंट्री माना जाये जिससे बच्चे अपनी इच्छा से पढ़े।
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