सचिन पायलट: आसमान की उड़ान से लेकर बगावत की डगर तक
कांग्रेस पार्टी के नेता सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री से पूर्व उप मुख्यमंत्री हो गए। कांग्रेस हाई कमांड ने फैसला सुनाया और उन्हें इस महत्वपूर्ण पद से हटा दिया।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ नाराज़गी सचिन पायलट को काफ़ी भारी पड़ गई। लेकिन उन्होंने अपने फैसले में कोई बदलाव नहीं किया। आइये सचिन पायलट के कांग्रेस के साथ बिताए गए 18 साल के राजनितिक सफ़र पर नज़र डालते हैं। सचिन 2002 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। अपने पिता राजेश पायलट की सड़क हादसे में मौत की बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का निश्चय किया।
आसमान की उड़ान से लेकर बगावत तक
सचिन का सपना था कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी करना और वह भारतीय वायुसेना में पायलट की नौकरी करना चाहते थे। लेकिन उनकी आँखों की रौशनी की वजह से यह सपना छोड़ना पड़ा। इसके आलावा अपने पिता से प्रेरित होकर उन्होंने अपने जीवन की दशा बदली और ऐसे लीडर बने जी एक टाइम पे लोगों के घरों तक जाकर उनकी बात सुनता था।
यूपी के सहारनपुर में जन्मे पायलट ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई दिल्ली से की और दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने अमरीका से एमबीए किया।
दिल्ली में उन्होंने बीबीसी न्यूज में एक प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में भी काम किया और छोटी अवधि के लिये अमेरिकी वाहन कंपनी जनरल मोटर्स के लिए भी काम किया।
कम उम्र में पायलट की कामयाबी की उड़ान
अपने राजनितिक कार्यकाल में ये कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए। मात्र 26 साल की उम्र में सचिन पायलट चौदवीं लोकसभा में चुने जाने वाले युवा सांसद बने। इसके बाद 2004 में लोकसभा की गृह मामलों की स्थायी समिति के सादस्य बने। सचिन ने पॉलिटिक्स में आने का फ़ैसला सोच समझ के किया था। यह उनके लिए नया भी नहीं था क्योंकि उनके माता पिता का राजनीती में नाम था।
2006 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय में सलाहकार समिति के सदस्य बने। सचिन अपने राजनितिक करियर में काफ़ी कर्मठ साबित हुए और राहुल से भी अच्छे रिलेशन्स थे। सचिन 2009 में संचार और आईटी के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री बने और 2012 में इन्हें कैबिनेट में कॉर्पोरेट मामलों के लिए मंत्री नियुक्त किया गया। 2014 में पायलट को राजस्थान प्रदेश कोंग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया।
सचिन ने 2018 में कांग्रेस को जिताने में अहम भूमिका निभाई और 2018 में ही टोंक विधानसभा सीट से चुनाव भी जीता। 41 साल की उम्र में उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पंहुचे। कांग्रेस पार्टी में इतने साल तक कार्यरत होने के बावजूद और इतना सब हासिल करने के बाद भी पायलट खुद को पार्टी से ऊपर रखते नज़र आये। यही कारण है कि उन्होंने पार्टी के साथ इस तरह का बर्ताव किया और अलग खड़े हुए।
सचिन पायलट यूँ तो मना कर रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी की कोई लालसा नहीं है। पर माना जा रहा है कि उनके इस मतभेद करने की वजह सीएम बनना ही है। इसके अलावा कांग्रेस में इतना टाईम देने के बाद उनका पार्टी के प्रति रवैया कांग्रेस के समर्थकों को रास नहीं आया। इसीलिए कांग्रेस ने उन्हें अंत में पार्टी से दूर ही कर दिया है।
अब देखना यह होगा कि कैसे गहलोत सरकार अपनी बहुमत साबित करती है और सरकार चलाती है। वहीं ये भी देखना दिलचस्प रहेगा कि पायलट क्या करते हैं, क्योंकि बीजेपी में शामिल होने की उनकी कोई इच्छा नहीं है।
अदिति शर्मा