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कोरोना का इलाज मिल सकता है, लेकिन इस वायरस का नहीं

एक तरफ जहां कोरोना इंसान का दम घोट रहा है वहीं समाज में फैला ये घातक वायरस इंसानियत का दम घोट रहा है। जिस प्रकार कोरोना से संक्रमित मरीज़ को सेल्फ आइसोलेशन में रखा जाता है ठीक वैसे ही इस वारयस के कारण एक खास तबके को समाज से आइसोलेट किया जा रहा है।

लगभग एक महीने पहले मुस्लमानों के अलावा शायद ही कोई और जानता हो कि तबलीग़ जमात (Tabligh Jamat) वाले आखिर होते कौन है, क्या करते है कैसे रहते है। लेकिन हमारे देश की घटिया राजनिति और दोगली मीडिया (Media) ने लबलीग़ जमात को देश के बच्चे बच्चे तक पहुंचा दिया। इसके पीछे की वजह और नियत आप जानते ही है। थोड़ा पिछे जाकर अगर देखे तो आपको याद होगा कि देश में कोरोना की आमद लगभग जनवरी में हो चुकि थी। उससे पहले ये वायरस चीन (China) समेत कई देशों में अपना प्रकोप भी दिखा चुका था। जनवरी तक चीन में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से हज़ारो की संख्य़ा में मौते भी हो चुकि थी। वहीं WHO भी दुनिया को इसके आने वाले घातक प्रभाव से आगाह कर चुका था। लेकिन भारत में इसकी गंभीरता को समझने में लगभग 2 महीने से भी ज्य़ादा समय लगा।

इस बीच देश में अनेक बड़े बड़े कार्यक्रम भी हुए। विदेशी यातायात भी हमेशा की तरह बदस्तूर जारी रहा। फरवरी के आखिर में होने वाला एक कार्यक्रम ऐसा भी था जिस पर पूरी दुनिया की नज़रे थी। यानि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड़ ट्रंप (Donald Trump) का भारत दैरा। अमेरिका (America) से सैकड़ों की तादाद में मेहमान आए थे जिमसे कुछ कुत्ते भी शामिल थे। उस वक्त जब विशव स्वास्थय संगठन (WHO) दुनिया कोसोशल डिसटेंसिग’ (Social Distansing) की नसीहत दे रहे था तब हमने अहमदाबाद (Ahmadabad) में लाखों की तादाद में लोगों सड़कों पर ट्रंप के स्वागत के लिए खड़ा किया। वहीं दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में एक लाख से ज़्यादा लोगों नेनमस्ते ट्रंप’ (Namste Trump) कार्यक्रम में शिरकरत की। उसके बाद ट्रंप ताजमहल (Tajmahal) देखने आगरा गए और फिर दिल्ली के कई कार्यक्रमों में शिरकत की।

अगर आज आप ध्यान दे तो मालूम पडेगा कि अहमदाबाद, आगरा और दिल्ली ये तीनों ही शहर बुरी तरह से कोरोना (Corona) की चपेट में है। लेकिन हमने इलज़ाम किसके सिर मढ़ा.. तबलीग़ जमात के। दरअसल वो आसान शिकार थे। उसमें हमारी नाकामी भी छिप गई और समाज का ध्रुवीकरण भी बेहद खुबसुरती से हो गया। अगर हमारे देश का विपक्ष मज़बूत होता और मीडिया ज़िम्मेदार तो सवाल जमात से नहीं सरकारों से होते। पहला सवाल इतने खतरे के चलते आखिर आपने विदेशी विज़ा पर रोक क्यों नहीं लागाई। दूसरा और बेहद ज़रुरी सवाल आखिर एयरपोर्ट पर आपकी चाक चौबंध सुरक्षा और थर्मल स्क्रीनिंग (Thermal Screening) में कोरोना संदिग्ध क्यों पकड़ में नही आए। तीसरा सवाल दिल्ली पुलिस और केजरीवाल से होना चाहिए था कि मरकज़ (Markaz) के जानकारी देने के बावजूद जमात वालों के वहां से निकालनें में लापरवाही क्यों की गई।

मगर हमने देखा कैसे हमारे दोगले मीडिया ने अपना काम अंजाम दिया। जमात के बहाने उसने मुस्लमानों के खिलाफ एक षड़यंत्र रचा और हालात ऐसे बना दिए कि जैसे कोरोना का इजाद चीन में न होकर भारत के मुस्लमानों द्वारा हुआ हो। मीडिया द्वारा बनाया नफरत का ये वायरस हमारे समाज में कोरोना से भी तेज़ फैला। कुछ समय बाद ही समाज में इसके लक्ष्ण भी दिखने लगे। फल विक्रेता व सब्ज़ी बेचने वालों से अब दाम पूछकर नहीं बल्कि नाम पूछ कर खरीदारी होने लगी। महज़ नाम सुनकर ही अब हम सामने वाले को परखने और समझने लगे है। समाज में खुलेआम मुस्लमानें के आर्थिक बहिष्कार की मांग उठने लगी। कोरोना वायरस का इलाज तो शायद हम ढूंड लें, किन्तु समाज में फैले इस वायरस का इलाज कभी मुमकिन नहीं। 

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