कुवैत सरकार के इस कानून से भारतीयों को हो सकती है ये दिक्कत
कुवैत की सरकार ने प्रवासियों को लेकर एक नया कानून तैयार किया है जिसने भारतीयों के मन में उन चिंताओं को जन्म दिया है, जो दो साल पहले सैकड़ों इंजीनियरों के साथ हुई थी जब उन्हें कुवैत में अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। इस बिल के मुताबिक कुवैत में रहने वाले भारतीयों की कुल आबादी को केवल 15 फीसदी तक सीमित किया जाना चाहिए। एक अंग्रेजी अखबार अरब न्यूज़ के मुताबिक कानूनी समीति ने बिल के प्रावधान को विधिसम्मत माना है।

कुवैत में सबसे अधिक प्रवासी भारतीय
इराक़ के दक्षिण और सऊदी अरब के उत्तर में बसे इस छोटे से मुल्क कुवैत की कुल आबादी लगभग पैंतालीस लाख है ,जिसमें से कुवैतियों की जनसंख्या केवल 3.5 लाख है। मौजूदा स्थिति में यहां फिलिपीन्स, बंगलादेश, पाकिस्तान और अन्य मुल्कों के प्रवासियों में सबसे ज्यादा भारतीय हैं।
सूत्रों के हवाले से माना जा रहा है कि नए कानून के तहत दूसरे मुल्कों से आये कुवैत में रहने वाले लोगों की तादाद को कम किया जा सकता है और इसे केवल कुल आबादी के तीस फीसदी तक लाया जा सकता है।
इंजीनयरिंग की डिग्री होने के बावजूद सुपरवाइजर की नौकरी
कुवैत की एक मंटीनेशनल कंपनी में काम करनेवाले नासिर को इंजीनयरिंग की डिग्री होने के बावजूद मजबूरी में सुपरवाइजर की पोस्ट पर काम करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि यहां के भारतीय सोच रहे हैं यदि ये बिल पास हो गया तो क्या होगा? क्योंकि 2018 में कुवैती नियमों के कारण IIT और BITS Pilani से पास हुए इंजीनियरों की नौकरी चली गई थी।
बरहाल वो खुद को खुशकिस्मत मानते हैं क्योंकि उन्हें नई कंपनी में काम मिल गया। उन्होंने बताया कि हालात ऐसे हैं कि इंजीनियरों को फोरमैन व सुपरवाइजर की पोस्ट पर काम करना पड़ता है।
कुवैत में रहने वाले हैदरबाद निवासी मोहम्मद इलियास का कहना है कि प्रवासी कानून जैसे नियम की बात 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से हो रही है और 2016 में जब सऊदी ने निताक़त क़ानून को लागू किया तबसे इस पर काम शुरू होने लगा। सऊदी के निताक़त क़ानून के मुताबिक वहां के सरकारी विभागों और कंपनियों में स्थानीय लोगों की नौकरी दर को ऊपर ले जाना है।
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कुछ कुवैती सांसदों ने प्रवासियों के ख़िलाफ़ कई बातें कहीं है और उन्हें तूफ़ान बताया है। उनका मानना है कि प्रवासियों ने नौकरियों और हुकूमत के जरिए देश पर कब्ज़ा कर लिया है।
कुछ स्थानीय लोगों ने इस नए कानून के ख़िलाफ़ भी बयान दिए हैं। इतिहास पर नज़र डालें तो 19वीं सदी के अंत से 1961 तक ब्रिटेन के अंडर में रहे कुवैत में भारतीयों का जाना लंबे समय से शुरू हो गया था। और आज की डेट में व्यापार से लेकर तक़रीबन हर क्षेत्र में वहां भारतीय मौजूद हैं।
रीवन डिसूज़ा जो की कुवैत के स्थानीय अंग्रेज़ी अख़बार टाईम्स कुवैत के संपादक हैं उनका परिवार 1950 में ही भारत से कुवैत चला गया था और उनकी पैदाईश भी वहीं की है। रीवन का कहना है कि प्रवासियों पर बिल अभी कई चरणों से गुज़रने के बाद ही कानून बनेगा।
रीवन डिसूज़ा इस बात को दूसरे नज़रिए से भी देखते हैं और कहते हैं कि कोविड-19 संकट और भारत सरकार द्वारा वहां रह रहे ग़ैर–क़ानूनी लोगों को वापस ले जाने की मांग की अनदेखी देख कुवैती हुकूमत नाराज़ है और वो अब किसी देश के काम करनेवालों पर आश्रित नहीं रहना चाहते।