सरकार की कथनी और करनी को पहचानने वाला सर्वप्रथम वर्ग मज़दूर
लेखक- मुजाहिद नफ़ीस, कन्वीनर माइनॉरिटी कोर्डिनेशन कमेटी, गुजरात

दुनिया के 100 से अधिक देश कोविड़19 नाम के वायरस से जूझ रहे हैं, भारत में अभी तक लगभग 2 लाख के करीब कोरोना के कन्फ़र्म केस आए हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, मुख्य रूप से प्रभावित राज्य हैं। भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही खस्ता हाल है। देश में डॉक्टरों की उपलब्धता 1,1456 है, गुजरात में 33 ज़िलों में सिर्फ 23 जिलों में ही ज़िला अस्पताल हैं।
ऐसे में एक वैश्विक महामारी से लड़ना एक चुनौती से कम नहीं। देश में रोज़गार भी एक चुनौती ही है। एक सर्वे के अनुसार लगभग 90% से अधिक लोग असंगठित क्षेत्र के रोज़गार से जुड़े हैं। ये अपने राज्य में खेत मज़दूर, रिक्शा, निर्माण क्षेत्र व दूसरे राज्यों में कांट्रैक्ट लेबर पर एमएसएमई (MSME) क्षेत्र में काम करने के लिए जाते हैं। दूसरे राज्यों में काम करने वालों की संख्या करोड़ों में है। इन लोगों का जीवन स्तर बहुत निचले स्तर पर है। ये छोटे–छोटे कमरों, झुग्गी–झोपड़ी, चाली व कार्यस्थल पर अस्थाई आसरों में रहते हैं।
यहाँ उनके लिए न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं होती हैं। इन मज़दूरों को जितना काम उतना वेतन मिलता है। ये लोग रोज़ समान लाकर रोज़ खाना बनाते हैं। ये सब जानते हुए भी सरकार ने बिना पूर्व तयारी के अचानक देश में लॉक डाउन की घोषणा कर दी। इससे सबसे बुरा प्रभाव इन दिहाड़ी, असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों पर पड़ा। देश की लगभग 70% आबादी को समझ ही नहीं आया की आगे क्या होगा। लोग अपने घरों में बंद हो गए, उनको खाने की दिक़्क़त होने लगी ऐसे में देश की स्वयंसेवी संस्थाएँ, धार्मिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता फ़ौरन आगे आए और उन्होने इन वर्गों को खाना, राशन पहुंचाना शुरू किया।
लॉक डाउन 1 के बाद की अनिश्चितता, स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल, वेतन और खाने की परेशानी, जान जाने का डर आदि ने लोगों को अपने मूल वतन जाने के लिए प्रयास करना शुरू करवा दिया। सरकार की ओर से मूल प्रश्नो के बजाए विघटनकारी बयानबाजी ने लोगों का विश्वास कम किया| दूसरी तरफ फंसे हुए मज़दूरों ने मान लिया कि सरकार उनके लिए कुछ नहीं करेगी उनको जान को ख़तरा है इसलिए उनको खुद ही अपने घर जाना होगा। लोग हज़ारों किलोमीटर पैदल अपने परिवार यहाँ तक कि गर्भवती महिलाओं भी घर की तरफ़ निकाल पड़ी।
सरकार के प्रति इतना अविश्वास हाल के 20- 25 साल में नहीं देखा गया कि मज़दूर वर्ग जिसको अनपढ़, जाहिल, गंवार यहाँ तक कि देश पर बोझ कहा जाने वाले वर्ग ने सरकार के चरित्र को पहचानने में जिस दूरदर्शिता का परिचय दिया वो निशित ही सलाम के योग्य है। सरकार लॉक डाउन के 60 दिन में अभी तक भी अपनी उल्लेखनीय उपास्थि दर्ज नहीं करा पायी, रोज़ बदलते नियम, ढिंढोरा पीटना, लोगों को सुरक्षित घरों तक पहुंचाने में विफ़ल, सभी की जांच में विफ़ल, सभी को खाना पहुंचाने, यहाँ तक कि लगभग 40 श्रमिक स्पेशल ट्रेन अपना गंतव्य मार्ग भटक कर कहीं और चली गयी और 24 घंटे का सफ़र कई गुना ज़्यादा समय में पूरा हो रहा है, सरकार हर एक मोर्चे पर असफल हुई है।
हद तो ये कि मज़दूरों को घर ले जाने वाली श्रमिक ट्रेन में उन लोगों से किराया वसूला गया/ जा रहा है जो लगभग 2 महीने से काम पर नहीं गए, उनको वेतन नहीं मिला, स्वयंसेवी संस्थाओं, कार्यकर्ताओं के दिये खाने से ज़िंदा रहे। हद तो यहाँ तक है कि लोगों के खाना बांटने पर भी पाबंदी लगाई गयी। सरकार की ओर से आने वाले समय में लोगों के रोज़गार, स्वास्थ्य, शिक्षा को लेकर कोई स्पष्टता दिखाई नहीं दे रही है। मुझे विश्वास है कि मज़दूर वर्ग ही देश को नया रास्ता दिखाएगा और मज़दूर देश में एक धुरी बनेंगे।