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Emergency के 45 साल बाद कैसा है भारतीय Democracy मिज़ाज

आज भारत के लोकतंत्र के सबसे काले पल के 45 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस आपातकाल ने आजादी और लोकतंत्र को नष्ट कर दिया था और लोगों के अधिकार एकदम से खत्म कर दिए गए थे। जून 25-26 की रात, भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 को लागू किया और राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया। 

इंदिरा गांधी का कहना था कि देश में अव्यवस्था इतनी ज्यादा हो गई थी, जिसके लिए भारत को एक शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत थी।मजे की बात ये थी कि इस फैसले को लेने से पहले इंदिरा ने कानून मंत्री एचआर गोखले से इस बारे में कोई बात नहीं की थी। साथ ही इस मामले को उन्होंने मंत्रिमंडल के सामने भी नहीं रखा था।

फ़िर क्या था, इंदिरा की खुद की कैबिनेट के लोग इस बात से हैरान थे और अगले ही दिन गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो चूका था। सबसे पहले जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई को हिरासत में लिया गया था। लगभग 1.1 लाख लोगों को बिना किसी गुनाह के गिरफ़्तार किया गया और विपक्ष के ज्यादातर पोलिटिकल लीडर्स को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया गया था।

भारत जिसका संविधान विश्व का सर्वश्रेष्ठ माना गया है, उस वक्त एकतरफा संशोधन किए गए जैसे की 1942वा संशोधन और प्रस्तावना के बेसिक स्टाइल में बदलाव किया गया। इस दौरान भारतीय न्यायपालिका भी सुन पड़ गयी थी और सरकार के कंट्रोल में थी। मीडिया की बात करें तो निर्णय के बाद ही बड़े अख़बारों की बिजली काट दी गई  जिससे लोगों तक सच न पहुंच सके। जो भी मीडिया हाउस काम कर रहे थे उसे भी सरकार के अप्रूवल के बाद ही पास किया जा रहा था।

लोकतंत्र खतरे में था, न्यायपालिका म्यूट थी और लोग डरे हुए थे। ये वह दौर था जो भारतीयों के लिए सबसे बुरे वक्त के नाम पर हमेशा याद किया जाता है। पर यहाँ सवाल उठता है कि तब तो एमरजेंसी लगाई गयी थी और इसलिए मानवाधिकारों का हनन हुआ था। आज भी एमरजेंसी के इस निर्णय को गलत ठहराया जाता है और इसे स्वतंत्रा पर गहरी मार कहा जाता है।

लेकिन क्या 45 साल बाद भी हम स्वतंत्र हैं? क्या आज भी हम अपनी बात और विचार खुल कर रख सकते हैं?

हाल ही में कई ऐसे किस्से हुए हैं, जिसमें अपनी विचारधारा को बयान करने पर लोगों को हिरासत में लिया गया है। पिछले दिनों सीएए के प्रोटेस्ट के कारण भी इस डेमोक्रेटिक  राईट को इस्तेमाल करने पर सवाल किए गए थे।

अजीब बात तो ये है कि इतने साल की आजादी और एमरजेंसी के बाद भी हमारे देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं है, जिस बात को कहती तो सब सरकारें हैं, लेकिन आज भी हालात में कुछ खास तबदीली नहीं आई है। आज भी मीडिया पूरी तरह से आजाद नहीं है। यही कारण है की ग्लोबल सुर्वे के फ्रीडम इंडेक्स में भारत की पोजीशन 83 है और ये सबसे कमजोर डेमोक्रेसी की श्रेणी में आ गया है। 

अदिति शर्मा
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