देश

संविधान निर्माता और समानता के प्रतीक अंबेडकर

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, वो भारत रत्न जिसने भारत के संविधान की इबारत लिखी। भीमराव आम्बेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे।  एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें सारा जीवन नारकीय कष्टों में बिताना पड़ा। बाबासाहेब आंबेडकर ने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म की चतुवर्ण प्रणाली और भारतीय समाज में सर्वव्यापित जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया।  उनके बचपन का नाम रामजी सकपाल था। यूँ तो बाबा साहेब के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे खुद उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे। लेकिन स्कूल में सक्षम होने के बावजूद आंबेडकर को अन्य अस्पृश्य बच्चों के साथ विद्यालय मे अलग बिठाया जाता था। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, जब प्यास लगती तो कोई ऊंची जाति का व्यक्ति ऊंचाई से पानी उनके हाथों पर पानी डालता, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के पात्र को स्पर्श करने की अनुमति थी। उनके एक ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अम्बेडकर रख लिया। आंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी अर्जित कीं। एक विश्व स्तर के विधिवेत्ता आंबेडकर को एक दलित राजनीतिक नेता और भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के तौर पर पहचाना जाता है। अम्बेडकर मनुवाद के धुर विरोधी थे और यही कारण है कि उन्होंने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। महात्मा गांधी द्वारा दलितों को हिंदू धर्म में वापस लाने के प्रयासों के जवाब में, अंबेडकर ने कहा था,  किकड़वी चीज मीठी नहीं बनाई जा सकती। किसी भी चीज का स्वाद बदला जा सकता है. लेकिन जहर को अमृत नहीं बनाया जा सकता है।ऊंची जाति के हिंदुओं की तुलना मुस्लिम सांप्रदायिकों से करते हुए उन्होंने कहा, “वर्ग वर्चस्व के इस स्वार्थी विचार के साथ, वे निचली जाति के लोगों से धन, शिक्षा और शक्ति सबकुछ छीनने के लिए हर कदम उठाते हैं। शिक्षा, धन और शक्ति को अपने पास रखने और दूसरों के साथ नहीं बांटने के इस दृष्टिकोण के साथ उच्च जाति के हिंदुओं ने निचले वर्गों के हिंदुओं के साथ अपने संबंध में विकसित किए हैं और ये उन्हें मुसलमानों तक बढ़ाएंगे। वे मुसलमानों को भी सत्ता  और पद से हटाना चाहते हैं, जैसा उन्होंने निम्न वर्ग के हिंदुओं के साथ किया है। उच्च जाति के हिंदुओं का यह गुण उनकी राजनीति को समझने की चाभी है। अंबेडकर ने हिंदुत्व के अलमबरदारों और मुस्लिम लीग को एक समान माना। उन्होंने दोनों को एक ही सिक्के का दो पहलू माना।  उन्होंने लिखा ये अजीब लग सकता है कि जहां सावरकर और जिन्ना जिन्हें एक देश और दो देश के मुद्दे पर एक दूसरे का विरोधी होना चाहिए था, इसके बजाए दोनों में पूरी सहमति है। दोनों ही सहमत हैं, न केवल सहमत हैं, बल्कि जोर दे रहे हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैंएक मुस्लिम राष्ट्र और एक हिंदू राष्ट्र। दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों पर करारा हमला करते हुए अंबेडकर ने अपनी किताब Pakistan or The Partition of India में लिखा, “यदि हिंदू राज सच में बन जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है, कि यह इस देश के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी।  

डॉ भीमराव अंबेडकर के विचार

  • मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है।

  • मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।

  • वे इतिहास नहीं बना सकते जो इतिहास को भूल जाते हैं।

  • शिक्षित बनो, संगठित रहो और उत्तेजित बनो।

  • धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए।

  • मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचारप्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।

  • एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है।

  • समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।

  • बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।

  • मानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।

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