
तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किये जाने के बाद से ही विश्व भर में चर्चा जारी है। सभी देश अफ़ग़ानिस्तान में फसे अपने नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने के निरंतर प्रयास कर रहे हैं। भारत भी इसी दिशा में प्रयासरत है और अफ़ग़ानिस्तान से अपने लोगों को वापस लाया भी जा रहा है।मंगलवार को दो विमानों के द्वारा काबुल से भारतीय दूतावास के सभी कर्मचारियों और राजदूत सहित लगभग 150 भारतीयों को देश वापस लाया गया।
इसी दौरान अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि दार्जिलिंग, तेराई और कलिमपोंग के करीब 200 लोगों के अफ़ग़ानिस्तान में फंसे होने की ख़बर उन्हें मिली है। ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव की ओर से विदेश मंत्रालय से खत के द्वारा अपील की जा रही है कि अफ़ग़ानिस्तान में फंसे हुए लोगों को हिफाज़त से भारत वापस लाने के लिए इंतज़ाम किया जाए।
तालिबान को लेकर भारत का रुख कैसा होगा, कुछ बातों पर करता है निर्भर
इन सब के चलते पूरी दुनिया की नज़र भारत की प्रतिक्रिया जानने पर भी टिकी है। हालांकि तालिबान ने भारत की ओर से सहयोग मिलने की इच्छा जताई थी। लेकिन तालिबान के मुद्दे पर भारत का रुख क्या रहेगा यह कुछ बातों पर निर्भर करता है। भारतीय अधिकारियों की माने तो तालिबान की कथनी और करनी में फर्क है।
सूत्रों के अनुसार, भारतीय अधिकारियों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान और तालिबान को लेकर भारत का निर्णय कुछ बिंदुओं पर निर्भर करता है। पहला कि भारत के खिलाफ़ उसकी ज़मीन का प्रयोग न किया जाए। दूसरा, तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार कैसा रहता है।
तीसरा कि 2011 में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच हुए राजनीतिक समझौतों पर तालिबान का क्या रवैया रहता है। वहीं तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से भी बातचीत हुई है। गौरतलब है कि अमेरिका सहित यूरोपीय संघ में शामिल कई देश तालिबान को सरकार के रूप में मान्यता देने के बिल्कुल पक्ष में नहीं हैं।
-भावना शर्मा