इस कोरोना काल में दोहरी मार झेल रहा हैं मजदूर
कोरोना महामारी के इस दौर में मज़दूरों की आवाजाही के तमाम किस्से आ रहे है। लॉक डाउन में मज़दूरों के पैदल जाने की तमाम तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। या तो मज़दूर भूख के लिए तड़प रहे है या गर्मी में अपने घर के लिए बढ़ते चले जा रहे है। क्या सरकार के वादे केवल सुनने और सुनाने के लिए है?

- पिता को साइकिल पर बैठाकर हरियाणा से दरभंगा पहुँची बेटी
ज्योति अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बैठा कर हरियाणा के गुरुग्राम से अपने घर बिहार के दरभंगा पहुंची। भूख प्यास से झुंझती हुई ज्योति ने केवल 15 साल की उम्र में एक हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी सात दिन में तय की। साइकल पर अपने पिता को पीछे बैठा कर की इस यात्रा में ज्योति ने एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर दूरी तय की। गरीबी इंसान से क्या कुछ नही कराती ज्योति और उसके पिता इसके जीती जागती मिसाल है।
गुरुग्राम में किराये की ई–रिक्शा चालक ज्योति के पिता का एक्सीडेंट हो गया था। इसी बीच सरकार ने लॉक डाउन का ऐलान कर दिया। इनके पास न तो पेट पालने के लिए खाना था, न ही किराया देने का। तभी दोनों ने से गुरुग्राम से दरभंगा यातायात न होने के कारण साइकिल से जाने का फैसला किया। आखिरकार सात दिन के बाद कठिनाई का सामना करते हुए ज्योति और उसके पिता दरभंगा पहुँचे। गांव वालों ने भी इनके जज़्बे को सलाम किया।
वैसे तो सरकार ने देर से ही सही श्रमिक ट्रैन चलाने का फैसला क़िया था। प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुँचाने के लिए देशभर में श्रमिक ट्रेनें चलाई गई। लेकिन, इसके बावजूद भी मज़दूरों के हालात में खासा सुधार नही आया है। हर रोज ऐसे बेबसी भरे किस्से सामने आ रहे हैं।
- चारपाई पर बिमार बेटे को लेकर पिता पंहुचा मध्य प्रदेश
वहीं एक दूसरी तस्वीर में एक प्रवासी मजदूर पिता ने अपने परिवार के साथ पैदल ही पंजाब के लुधियाना से मध्य प्रदेश के सिंगरौली तक का सफर तय किया। राजकुमार लुधियाना में मज़दूरी करते थे, उनके 15 साल के बेटे के गर्दन की हड्डी टूट गयी। इससे बेटा चल नही सकता था, ऐसे में मजदूर पिता ने इस तरह ही बेटे और परिवार को लेकर जाने की ठान ली। साथ में 18 लोग और इस यात्रा में पैदल चल पड़े।
प्रशाशन ने किसी भी तरह की मदद नही की और यही कारण है इन मज़दूरों को चलना पड़ा। हलाकि बाद में कानपूर हाइवे पर पुलिस और अधिकारियो ने इनकी मदद की और इनके लिए प्रबंध किया। क्या ये प्रबंध पहले नही हो सकता था? क्या पंजाब प्रशाशन यह सुनिश्चित नही कर सकता था कि मज़दूर ऐसे हालातों में पैदल न जाये? क्या उत्तर प्रदेश, हरयाणा बॉर्डर पर उनकी मदद नही की जा सकती थी।
सम्भवतः हो सकता था लेकिन हमारा प्रशाशन मज़दूरों के लिए प्रबंध करने में असफल हुआ है। यही कारण है कि देश में मज़दूरों की ये दुर्दशा है। इससे हमारे देश के विकास के दावो की पोल खुल गई है। साथ ही इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया है। ऐसे न जाने कितने ही ज्योति और राजकुमार है जिनको इस गरीबी की मजबूरी ने बेबस कर दिया है।
सरकार जहाँ एक तरफ मज़दूरों के राशन का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर पुलिस भूखे मज़दूरों के खाना मांगने पर लाठीचार्ज करती दिख रही है। ऐसे कितने ही मज़दूर है जिनकी कोरोना से नही बल्कि गरीबी के वायरस ने जान ले ली है। लॉक डाउन से जो हाल इनका हुआ है वो शायद ही सरकारें अपने ऐसी रूम से समझेंगी। लेकिन जरूरत ये है कि इनके साथ इस तरह का व्यवहार न हो और योजनाएं का लाभ इन्हें असल में मिले। जिससे हम असली में आत्मनिर्भर भारत बना सकें।
अदिति शर्मा