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रमज़ान स्पेशल: इस्लाम में क्यों और कैसे रखा जाता है रोजा, जानें कब हुई इसकी शुरुआत

इस साल भारत में रमज़ान की शुरुआत 14 अप्रैल से होगी, यानी कि कल पहला रोजा रखा जायेगा। इबादत के इस पवित्र महीने में इस्लाम धर्म को मानने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं।

मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लाम को मानते हैं और इस्लाम में हर बालिग़ शख्स को रोजा या फर्ज करना जरूरी है। रमजान के इस पावन महीने में मुस्लिम्स रोजा रखते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं, साथ ही अपने हिसाब से चैरिटी जैसे तमाम नेक काम करते हैं। मौलाना खालिद रशीदी फिरंगी महली सहित कई मुस्लिम उलेमाओं ने एलान किया है कि सोमवार को भारत में रमजान का चाँद नहीं निकला है। ऐसी स्थिति में मंगलवार रात को विशेष नमाज अदा की जाएगी, जिसे तराबी कहते हैं।

इस्लाम के कौन से महीने में रखा जाता है रोजा?

इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को रमजान कहा जाता है। रमजान अरबी शब्द है और इसे इस्लामिक महीना कहा जा है, जिसे रोजे के लिए ख़ास कहा गया है। अरबी में रोजे को सौम कहा जाता है, जिसका मतलब होता है रुकना, ठहरना और खुद पर काबू रखना। फ़ारसी में उपवास को रोजा कहते हैं और भारत के मुस्लिम समुदाय पर फ़ारसी भाषा का अधिक प्रभाव होने के चलते यहां फ़ारसी शब्द का उपयोग होता है। आपको बता दें रोजा रखना इस्लाम के 5 मूलभूत सिद्धांतों में से एक है, जो कि सभी मुस्लिम्स के लिए जरूरी है। पहला है तौहीद यानी कलमा यानिकि अल्लाह को एक मानकर उसके बताये रास्ते पर चलना, दूसरा नमाज( एक दिन में पांच बार) तीसरा जकात यानिकि दान, चौथा है रोजा और पांचवा हज करना।

कब शुरू हुई यह परंपरा?

मौलाना राजियुल इस्लाम नदवी इस्लामी बताते हैं कि रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई। कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में साफ़ तौर से लिखा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्ज किया जाता है जैसे पहले की उम्मत पर फर्ज था। उनके मुताबिक मुहम्मद शब् मक्के से हिजरत कर मदीना जब पहुंचे उसके एक साल के नाड मुसलमानों को रोजा करने का हुक्म आया। तब से रोजा रखने की परंपरा इस्लाम में शुरू हुई।

सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त

रमजान में रोजा रखने वाले मुस्लिम्स सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक न कुछ खाते हैं और न पीते हैं। सुबह सूर्योदय से पहले सहरी की जाती है यानी कि फजर की अज़ान से पहले खा सकते हैं। जिसके बाद सूर्यास्त तक यानी कि पूरा दिन कुछ नहीं खाते और न ही पीते हैं। सूर्यास्त के बाद इफ्तार करते हैं और उससे पहले दिन में इबादत और या फिर अपने काम करते हैं। रोजे के दौरान पूरे जिस्म को और नब्जों को भी नियंत्रण में रखना जरूरी होता है। साथ ही इस दौरान न किसी को जुबान से तकलीफ देनी होती है और न किसी का हाथों से नुकसान और न आँखों से कुछ गलत देखना होता है।

रोजा रखने से किसको छूट दी जाती है?

रोजा वैसे तो सभी बालिग को करना जरूरी होता है लेकिन कुछ लोगों को जैसे की जो बीमार हैं या यात्रा पर हैं उन्हें छूट दी जाती है। इसके अलावा प्रेग्नेंट महिलाएं, जो महिला पीरियड्स पर हैं और छोटे बच्चों को भी छूट होती है। हालांकि जितने रोजे पीरियड्स के दौरान छूट जाते हैं उतने ही रोजे उन्हें बाद में रखने होते हैं। बीमार यदि रोजा रखते हैं तो वो सिर्फ सहरी और इफ्तारी के समय ही दवाई ले सकते हैं।

 

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