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क्या एर्तरुल ग़ाज़ी सीरीज़ के ज़रिए अपनी राजनाति चमका रहे है तेय्यप अर्दोआन?

तुर्की में ऑटोमन साम्राज्य के गठन पर बनी सिरीज दिरलिस एर्तरुल (Dirilis Ertugrul Ghazi) को वहां के सरकारी TV TRT1 पर प्रसारित किया गया। इसके अब तक पाँच सीज़न में कुल 448 एपिसोड आ चुके हैं। इस सिरीज़ में ऐतिहासिक तथ्यों से ज्यादा अर्दोआन की राजनीति और इस्लामिक राष्ट्रवाद झलकता है। इससे वर्तमान सियासी मूड को भुनाने की कोशिश की गई है।

अर्दोआन की पार्टी ने 2002 में सत्ता में आने के बाद, तुर्की के टेलीविजन सीरियल विदेशों से कमाई का सबसे बढ़िया ज़रिया बन गया है। साल 2017 में 150 से ज़्यादा टर्किश टीवी ड्रामा करीब 100 से ज़्यादा देशों में बेचे गए। टर्किश ग्लोबल एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में प्रॉफिट 35 करोड़ डॉलर तक पहुँच गया था और 2023 तक एक अरब डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य है।

टर्किश टीवी ड्रामे की लोकप्रियता से वहाँ टूरिज्म में भी इज़ाफ़ा हुआ है। दिरलिस एर्तरुल (Dirilis Ertugrul Ghazi) नामक सीरीज़ को लेकर तुर्की में सांस्कृतिक गोलबंदी देखने को मिली। जहाँ धार्मिक रूढ़िवादियों ने इसका जमकर समर्थन किया तो वहीं सेक्युलर धड़े ने इसकी धज्जियां उड़ाईं। यह नाटक सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब एमिरेट्स में बैन है।

आलोचना की वजह ?

महामत बोजदाग इस ड्रामा के लेखक और निर्माता हैं जो प्रेजिडेंट की पार्टी के भी सदस्य हैं। वो कहते हैं कि तथ्य अहम नहीं है और इसलिए हमने काल्पनिक कहानी दिखाई है। दिरलिस एर्तरुल (Dirilis Ertugrul Ghazi) टर्किश टीवी ड्रामे को अगर संक्षिप्त में कहा जाये तो ये हैइस्लाम, घोड़े की टाप और तलवार। इसमें दिखाया गया है कि एर्तरुल अल्लाह के बताए रास्तों पर चल रहा है और जितनी भी वो हिंसा कर रहा है जैसे सिर कलम करना यह अल्लाह की आज्ञा का पालन है। ड्रामे में इस्लामिक श्रेष्ठता को दिखाया गया है।

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इस्लाम के जरिए सांस्कृतिक घुसपैठ ?

पाकिस्तान में दिरलिस एर्तरुल (Dirilis Ertugrul Ghazi) ड्रामे को खूब पसंद किया जा रहा है। पीटीवी ने इस ड्रामे को उर्दू में डब करके यूट्यूब पर चैनल बनाकर पोस्ट करना शुरु किया तो इस चैनल की आज की डेट में 62 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं। शायद पाकिस्तान की जनता की सोच से यह इस्लामिक विचारधारा का ड्रामा काफ़ी मिलता है

यही कारण है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने खुद इस शो को देख लोगों से देखने की अपील की थी। इस बात से साफ़ है कि तुर्की के नेता पुराने इस्लाम की बातों को वापिस लाकर राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं।

अदिति शर्मा

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