अमेरिकी एजेंसी ने मोदी सरकार को दी नसीहत, CAA प्रदर्शनकारियों को रिहा करे सरकार
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली अमरीकी एजेंसी यूएस कमिशन फोर इंटरनेशनल रिलिजियस फ्ऱीडम यानी USCIRF ने भारत से अपील की है। इस अपील में USCIRF का कहना है कि विवादास्पद नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को रिहा कर दिया जाए।

USCIRF ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मोदी सरकार को संबोधित किया और इस विषय में खुलकर अपनी बात कही। ट्वीट में कहा गया है कि कोविद 19 महामारी के गंभीर समय में ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं कि भारत सरकार सीएए का विरोध कर रहे मुस्लिम एक्टिविस्ट को गिरफ्तार कर रही है। ऐसे समय में भारत को इन एक्टिविस्ट को रिहा करना चाहिए क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने अपने लोकतान्त्रिक अधिकार का ही उपयोग किया है।
During #COVID19 crisis, there are reports #India govt is arresting Muslim activists protesting the #CAA, including Safoora Zargar who is pregnant.
At this time, #India should be releasing prisoners of conscience, not targeting those practicing their democratic right to protest.
— USCIRF (@USCIRF) May 14, 2020
खास बात ये है कि इसमें सफूरा जरगर का भी जिक्र है। 27 साल की सफूरा को दिल्ली पुलिस ने हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफतार किया था। सफूरा जरगर जामिया मिलिया इस्लामिया की यूनिवर्सिटी स्कॉलर है। साथ ही सफूरा एक गर्भवती महिला है। जिनकी हाल ही में जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।
बता दें की विवादित नागरिकता संशोधन कानून CAA को लेकर बीते वर्ष देश भर में जगह–जगह प्रदर्शन देखे गए। ज्यादातर इन प्रदर्शनो में मुस्लिम महिलाएं शामिल थी। प्रदर्शन करने वालो का कहना है कि इस कानून में मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है। USCIRF की पिछले महीने आयी रिपोर्ट में दावा किया था कि साल 2019 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति काफी ख़राब हुई है। वार्षिक रिपोर्ट ने भारत को एक ऐसे देश के रूप में परिभाषित किया गया जहाँ साल 2019 में धार्मिक स्वतंत्रता का क्रमिक उल्लंघन हुआ है।
इस वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर हुए देशव्यापी प्रदर्शनों में लगभग 78 लोगों की मौत हुई। राजधानी दिल्ली में हिंदू–मुस्लिमों के बीच हुई हिंसा में कई लोगों की जान गई।
वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार एजेंसी ने भारत को टियर-2 की श्रेणी में रखा है। रिपोर्ट के हिसाब से एनआरसी को मुस्लिमों के साथ भेदभाव के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास है। बता दें असम में एनआरसी की अंतिम लिस्ट जारी होने के बाद करीब 19 लाख लोगो को इससे बहार रखा गया था।
क्या भारत में मुसलमान असुरक्षित?
रिपोर्ट में दिसम्बर 2019 को पार्लियामेंट में पास हुए नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चिंता जताई गई है। इसके मुताबिक मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा हैं। नागरिकता संशोधन कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ग़ैर–मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात करता है। इसके पीछे सरकार की धारणा ये है कि इन अल्पसंख्यकों का धार्मिक उत्पीड़न होता है, इसलिए भारत सरकार यह बिल लायी है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए लागू होने के तुरंत बाद ही देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। सरकार ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ एक हिंसक कार्रवाई भी की थी।
मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में एनपीआर अपडेट करने का फैसला किया है। आखरी बार 2010 में इसे अपडेट किया गया था।
इस रिपोर्ट में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर(एनपीआर) पर भी सवाल उठाये गये हैं। एनपीआर को लेकर भी लोगो में नाराजगी है क्योंकि उनका मानना है कि यह एनआरसी का पहला कदम है। हालांकि सरकार ने इसपर साफ़ किया है कि एनपीआर और एनआरसी अलग है।
अमरीकी रिपोर्ट का कहना है कि एनपीआर को लेकर ऐसी आशंकाएं हैं कि यह क़ानून भारतीय नागरिकता के लिए एक धार्मिक परीक्षण बनाने के प्रयास का हिस्सा है। अगर ऐसा होता है तो इससे भारतीय मुसलमानों का व्यापक नुक़सान हो सकता है।
वहीं सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन से किसी भी भारतीय की नागरिकता को कोई खतरा नही है। उनके मुताबिक एनपीआर भी जंगण्डना के लिए किया जा रहा है।
ऐसे में जरूरी है कि देश के प्रत्येक नागरिक को भरोसे में लिया जाए और इन मुद्दों को स्पष्ट किया जाये , जिससे देश में आगे इस तरह का माहौल न बने। साथ ही भारत धर्म निर्पेक्षित देश की मिसाल बना रहे।
अदिति शर्मा