मजदूर दिवस पर देश-दुनिया के मजदूरों को क्रांतिकारी अभिवादन

आज जब पूरी दुनिया में प्रति वर्ष की भांति एक बार फिर मजदूरों को काम के 8 घंटे निश्चित कराने के लिए किए गए आंदोलन दी गई कुर्बानियां व सफलता के रूप में याद किया जा रहा है। वहीं आज पूरी दुनिया के मजदूर एक बार फिर बहुत बड़ी परेशानियों और इम्तेहान के दौर से गुजर रहे है। एक साथ पूरी दुनिया में मजदूरों पर एक तरह की परेशानी मजदूरी के लिए अपने घरों से दूर सुदूर राज्यों और देशों में जाना मजदूरी ना मिल पाने की स्थिति में आर्थिक संकट रहने और खाने की चिंता उससे भी ज्यादा संकट अपने वतन यानी घर वापस ना लौट पाना। घर से बेघर सड़कों पर और जंगलों में सिर पर सामान की गठरी और पैदल चल पड़ना। केवल एक चाह में कि वे अपने वतन अपने परिवार के पास पहुंच जाएं वहीं सुरक्षा की आशा में ऐसे में कोरोना जैसी महामारी का सामना और सत्ता में बैठे उनके नुमाइंदों की उदासीनता देश की नीतियां तय करने वाले शासकों के बेतुके फरमान दूर दूरदर्शिता आदेश आर्थिक नीतियों का चरमरा जाना और आगे क्या नीति तय होगी। इसका असमंजस असहज कर रहा है। यही समय है मजदूरों को उनकी ऐसी स्थिति पर सही तरह से विचार करने का कि उनकी यह अनिश्चितता भरी जिंदगी और यह दशा किसने बनाई। मजदूर पूंजी वादियों की चालों को समझने में कहां पर चूक कर गए। मजदूरों को मजदूरों की समस्याओं के बारे में विचार करने के बजाय जाति धर्म और क्षेत्रवाद के झगड़े में किसने डाल दिया है, कि मजदूर अपने वर्ग को पहचाने मजदूर की ना कोई जाति होती है ना कोई धर्म, पूरी दुनिया में दो ही वर्ग है। पूंजीपति और मजदूर और अपने हितों के लिए इन्हीं के बीच लड़ाई है और इस लड़ाई में जीत तभी मिलेगी जब दुनिया में मजदूर उसी तरह से एक मंच पर होंगे। जैसे काम के 8 घंटे तय कराने की लड़ाई के समय लगभग 100 वर्ष पूर्व थे आज मैं पूरी दुनिया के मजदूरों का क्रांतिकारी अभिवादन करती हुं, इस उम्मीद के साथ कि वे एक बार फिर बिना किसी भेदभाव के एक मंच पर आएंगे और अपने हितों की लड़ाई एकजुट होकर लड़ेंगे। इंकलाब जिंदाबाद
लेखिका- निगार नफ़ीस (सामाजिक कार्यकर्ता)
Inqlab zindabad
Nice article